Friday, June 23, 2023

महादेव अपनी गरदन में सांप क्यों लपेटे रहते हैं?

 

देवों के देव महादेव सभी देवताओं से निराले हैं। इनके अस्त्र शस्त्र से लेकर इनके वस्त्र और आभुषण भी सभी देवी-देवताओं से अलग है। शरीर पर बाघ की खाल धारण किए हुए महादेव गले में नाग का श्रृगांर करते हैं। तो क्या कभी किसी ने सोचा है इनके गले में नाग क्यों हैं। +वो नाग कौन हैं? और शंकर जी के गले में क्यों रहता है? दोस्तों आज हम आपको इस वीडियों में बताने जा रहें हैं कि भगवान शिव में  bके गले में हर समय नाग क्यों लिपटा रहता है। और वो उनके गले में कैसे आए।


एक कथा के अनुसार वासुकि भगवान शिव के परम भक्त थे। माना जाता है कि नाग जाति के लोगों ने ही सबसे पहले शिवलिंग की पूजा का प्रचलन शुरू किया था। वासुकि की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे वरदान मांगने के लिए कहा। तब नागराज ने उनके बाकि गणों की तरह ही उन्हें भी अपने गणों में शामिल करके उनकी सेवा करने का वरदान मांगा। तब से भगवान शंकर ने उन्हें अपने गले में धारण कर लिया।

.भगवान शंकर अपने सवारी नंदी की तरह की प्रेम करते हैं। और यही वजह है शिव और शिवलिंग को नाग के बिना अधूरा माना जाता है।

प्रदोष-व्रत : शिवजी का सबसे पावन और अचूक व्रत, जानिए कैसे करें


 

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प्रदोषकाल क्या है-
 
प्रदोष-व्रत में प्रदोषकाल का बहुत महत्व होता है। प्रदोष वाले दिन प्रदोषकाल में ही भगवान शिव की पूजन संपन्न होना आवश्यक है। शास्त्रानुसार प्रदोषकाल सूर्यास्त से 2 घड़ी (48 मिनट) तक रहता है। कुछ विद्वान मतांतर से इसे सूर्यास्त से 2 घड़ी पूर्व व सूर्यास्त से 2 घड़ी पश्चात् तक भी मान्यता देते हैं। किन्तु प्रामाणिक शास्त्र व व्रतादि ग्रंथों में प्रदोषकाल सूर्यास्त से 2 घड़ी (48 मिनिट) तक ही माना गया है।
 
 
पांच प्रदोषों का है विशेष महत्त्व
 
1. रवि प्रदोष- रविवार के दिन होने वाले प्रदोष को रवि-प्रदोष कहा जाता है। रवि-प्रदोष व्रत दीर्घायु व आरोग्य प्राप्ति के लिए किया जाता है। रवि-प्रदोष व्रत करने से साधक को आरोग्यता व अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। 

 
2. सोम प्रदोष- सोमवार के दिन होने वाले प्रदोष को सोम-प्रदोष कहा जाता है। सोम-प्रदोष व्रत किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए किया जाता है। सोम-प्रदोष व्रत करने से साधक की अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है।
 
3. भौम प्रदोष- मंगलवार के दिन होने वाले प्रदोष को भौम-प्रदोष कहा जाता है। भौम-प्रदोष व्रत ऋण मुक्ति के लिए किया जाता है। भौम-प्रदोष व्रत करने से साधक ऋण एवं आर्थिक संकटों से मुक्ति प्राप्त करता है।

 
4. गुरु प्रदोष- गुरुवार के दिन होने वाले प्रदोष को गुरु-प्रदोष कहा जाता है। गुरु प्रदोष व्रत विशेषकर स्त्रियों के लिए होता है। गुरु प्रदोष व्रत दांपत्य सुख, पति सुख व सौभाग्य प्राप्ति के लिए किया जाता है।
 
5. शनि प्रदोष- शनिवार के दिन होने वाले प्रदोष को शनि-प्रदोष कहा जाता है। शनि प्रदोष व्रत संतान प्राप्ति एवं संतान की उन्नति व कल्याण के लिए किया जाता है। शनि-प्रदोष व्रत करने से साधक को संतान सुख की प्राप्ति होती है।

प्रदोष-व्रत कैसे करें-
 
प्रदोष-व्रत प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को होता है। सभी पंचागों में प्रदोष-व्रत की तिथि का विशेष उल्लेख दिया गया होता है। दिन के अनुसार प्रदोष-व्रत के महत्त्व में और भी अधिक वृद्धि हो जाती है। जैसे सोमवार दिन होने वाला प्रदोष-व्रत सोम प्रदोष, मंगलवार के दिन होने वाला प्रदोष-व्रत भौम-प्रदोष के नाम से जाना जाता है। इन दिनों में आने वाला प्रदोष विशेष लाभदायी होता है। प्रदोष वाले दिन प्रात:काल स्नान करने के पश्चात भगवान शिव का षोडषोपचार पूजन करना चाहिए। दिन में केवल फलाहार ग्रहण कर प्रदोषकाल में भगवान शिव का अभिषेक पूजन कर व्रत का पारण करना चाहिए।

Monday, June 19, 2023

आषाढ़ मास में आने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि

 


भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुर्माहिसि 

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2023 कब से हैं?

आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से गुप्त नवरात्रि की शुरुआत होती है और नवमी तिथि को समाप्‍त होती हैं इस साल आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 19 जून 2023 सोमवार से शुरू होगी और 28 जून 2023 को समाप्‍त होंगी

क्यों करते हैं कलश स्थापना–

पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है। कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, आदि रखी जाती है। कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है। जिसमें जौ बोये जाते हैं। जौ बोने की विधि धन-धान्य देने वाली देवी अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है। मां दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित करते है। जिसके बाद मां दुर्गा को श्रृंगार, रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण अर्पित करते हैं। कलश में अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए।

देवी भागवत के अनुसार वर्ष में चार बार नवरात्रि आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि के दौरान साधक माँ काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, माँ ध्रूमावती, माँ बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं।

गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।

माघ नवरात्री उत्तरी भारत में अधिक प्रसिद्ध है, और आषाढ़ नवरात्रि मुख्य रूप से दक्षिणी भारत में लोकप्रिय है।
गुप्त नवरात्रि कथा :

कथा के अनुसार एक समय ऋषि श्रृंगी भक्तजनों को दर्शन दे रहे थे Iअचानक भीड़ से एक स्त्री निकलकर आई और करबद्ध होकर ऋषि श्रृंगी से बोली कि मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं जिस कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों का संपादन भी नहीं  पा रही , यहां तक कि ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पा  रही हू 

मेरा पति मांसाहारी हैं, जुआरी है, लेकिन मैं मां दुर्गा की सेवा करना चाहती हूं, उनकी भक्ति-साधना से अपने और परिवार के जीवन को सफल बनाना चाहती हूं ऋषि श्रृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए । ऋषि ने उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित है, लेकिन इसके अतिरिक्त 2 नवरात्रि और भी होते हैं जिन्हें ‘गुप्त नवरात्रि’ कहा जाता है

उन्होंने कहा कि प्रकट नवरात्रों में 9 देवियों की उपासना होती है और गुप्त नवरात्रों में 10 महाविद्याओं की साधना की जाती है I इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरूप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है  यदि  गुप्त नवरात्रि में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा-साधना करता है, तो मां उसके जीवन को सफल कर देती हैं

ऋषि श्रृंगी ने आगे कहा कि लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा-पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की पूजा करता है, तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती।  उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा करते हुए गुप्त नवरात्रि की पूजा की मां उस पर प्रसन्न हुईं और उस स्त्री के जीवन में परिवर्तन आने लगा l उसके घर में सुख-शांति आ गई पति, जो गलत रास्ते पर था, सही मार्ग पर आ गया गुप्त नवरात्रि की माता की आराधना करने से उनका जीवन पुन: खिल उठा l

गुप्त नवरात्र का महत्व
चारों नवरात्र हर साल तीन-तीन महीने की दूरी पर आती हैं। प्रत्यक्ष तौर पर चैत्र, गुप्त आषाढ़, प्रत्यक्ष आश्विन और गुप्त पौष माघ में मां दुर्गा की उपासना करके इच्छित फल की प्राप्ति की जाती है। प्रत्यक्ष नवरात्र में मां के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है और गुप्त नवरात्र में 10 महाविघा की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रों का महत्व, प्रभाव और पूजा विधि बातने वाले ऋषियों में श्रृंगी ऋषि का नाम सबसे पहले लिया जाता है। धार्मिक कथाओं के अनुसार, एकबार एक महिला श्रृंगी ऋषि के पास आई और अपने कष्टों के बारे में बताया। महिला ने हाथ जोड़कर ऋषि से कहा कि मेरे पति दुर्व्यसनों से घिरे हुए हैं और इस कारण कोई धार्मिक कार्य, व्रत या अनुष्ठान नहीं कर पा रही। ऐसे में क्या करूं कि मां शक्ति की कृपा मुझे प्राप्त हो और मुझे मेरे कष्टों से मुक्ति मिले। तब ऋषि ने महिला के कष्टों से मुक्ति पाने के लिए गुप्त नवरात्र में साधना करने के लिए कहा था। ऋषिवर ने गुप्त नवरात्र में साधना की विधि बताते हुए कहा कि इससे तुम्हारा सन्मार्ग की तरफ बढ़ेगा और तुम्हारा पारिवारिक जीवन खुशियों से भर जाएगा।
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Friday, June 16, 2023

Shiv bhakti

 🌼🌷Ketki ka phool🌼🌷

हिन्दू धर्म में फूलों को भगवान के समक्ष अर्पित किया जाता है। ताकि भगवान प्रसन्न हों और अपना आशीर्वाद हम पर बनाएं रखें।  गुलाब🌹, कमल,  चंपा 🌸, चमेली 🌼 आदि और भी कई ऐसे फूल हैं जिन्हें भगवान के चरणों में चढ़ाने से व्यक्ति के सभी दुख दर्द दूर हो जाते हैं।


आप में से अधिकतर लोगों को यह तो पता होगा कि केतकी का फूल भगवान शिव को अर्पित नहीं किया जाता है लेकिन क्या आप इसके पीछे का कारण भी जानते हैं। अगर नहीं तो आज हम आपको इस बारे में बताने जा रहे हैं।


एक बार ब्रह्म देव को अपने सर्वोपरी होने का अहंकार हो गया। जिसके बाद उन्होंने भगवान विष्णु के साथ इस विषय पर बहस छेड़ दी। तब भगवान शिव ने खंबे के रूप में प्रकट होकर भगवान विष्णु और ब्रह्म देव से उनके दोनों छोर पता लगाने के लिए कहा।


यानी कि जो भी पहले भगवा विष्णु के ज्योतिर्लिंग का आखिरी सिरा पहले ढूंढेगा उन्हें ही श्रेष्ठ माना जाएगा। जिसके बाद खंबे के ऊपरी भाग का छोर पता लगाने जहां एक ओर भगवान विष्णु गए तो निचले छोर का पता लगाने ब्रह्म देव ने अपनी यात्रा शुरू की।


ढूंढने के बाद भी जब भगवान विष्णु को महादेव के ज्योतिर्लिंग का छोर नहीं मिला तो उन्होंने अपनी यात्रा रोक कर महादेव के समक्ष यह स्वीकार किया कि वह अंतिम सिरा नहीं ढूंढ पाए। वहीं, ब्रह्मा ने यात्रा समाप्त तो की लेकिन एक झूठ के साथ।


दरअसल, जब ब्रह्म देव खंवे का दूसरा सिरा ढूंढने निकले तो उनके पीछे पीछे केतकी का फूल भी आने लगा। जब ब्रह्म देव ने यह देखा तो उन्होंने एक युक्ति के तहत महादेव के सामने झूठ बोल दिया कि उन्होंने सिरा ढूंढ लिया है और अपने इस झूठ में केतकी को शामिल करते हुए उन्हें गवाह बना लिया।


जहां एक तरफ महादेव के समक्ष बोले गए इस झूठ के चलते ब्रह्म देव को शिव शंकर के क्रोध का सामना करना पड़ा और महादेव ने उनका पंचम शीश काट दिया .


Tuesday, June 6, 2023

Goddess Baglamukhi

 

Baglamukhi Mantra: Meaning, Significance and Benefits


ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्व दुष्टानाम वाचं मुखम पदम् स्तम्भय


जिव्हां कीलय बुद्धिम विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा

"Aum Hreem Baglamukhi sarva dushtanaam vaacham mukham padam stambhya Jivhaam keelya, buddhim vinaashya hreem aum swaaha"


Meaning -  In this, the goddess is worshiped to make enemies powerless by stabilizing their poisonous tongue, legs, and intellect. They will never be able to do anything against you once they have interrupted their activities.


It is believed that Baglamukhi Mantra has miraculous powers. Mata Baglamukhi Mantra is known to ensure victory over enemies.  Baglamukhi Mantra is also effective for people participating in competitive exams and debates, etc. Baglamukhi Mantra helps in staying safe from evil spirits and inauspicious elements.

The Dash-Mahavidya is a collection of Parvati's Ten Adi Parashakti Avatars. Baglamukhi, popularly known as the "Goddess who paralyses foes (Stambhan)," is the eighth Goddess of Hinduism's Das Mahavidyas. She is also known as "Pitambari." Sthambini Devi, also known as Brahmastra Roopini, is a strong goddess who posses a cudgel  is a mallet or blunt  mace made either of wood or metal, it consists essentially of a spherical head mounted on a shaft, with a spike on the top. to destroy the hardships that her worshippers endure. She holds a club in her right hand with which she beats a demon, while pulling his tongue out with her left hand.

Goddess Baglamukhi is one of the Universal Mother's most powerful forms. Baglamukhi is revered as the guardian of virtue and the slayer of all evil because of her unlimited abilities.




Goddess Baglamukhi is worshipped for power, victory, protection for cuts, scars, operations and accidents and dominance over enemies.

The Baglamukhi Mantra chanting is suggested to the people of administration and management, Political leaders, to the people facing the problems of Court cases, Police or litigation. Baglamukhi Mantra can be used by a person facing loss in business, such as financial problems, false court cases, baseless allegations, debt problems, obstacles in business, etc.

Monday, June 5, 2023

हरिद्रा (हल्दी) गणपति महत्त्व

भगवान गणेश सभी देवताओं में प्रथम पूज्य कहलाते हैं. इन्हें बुद्धि का प्रतीक माना जाता है. गणेश जी अपने भक्तों की पीड़ा भी हर लेते हैं, इस कारण इन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है. भगवान गणेश की पूजा के लिए शास्त्रों में बुधवार का दिन समर्पित है. लेकिन क्या आप जानते हैं आखिर क्यों बुधवार के दिन पूजे जाते हैं भगवान गणेश.

गणेश यंत्र की पूजा की जाए तो आश्चर्यजनक परिणाम मिलते है। जैसा कि नाम से पता चलता है भगवान गणेश की इस साधना में ज्यादा से ज्यादा हल्दी का प्रयोग किया जाता है। यहां तक कि पूजन में, हवन में और भोजन में भी हल्दी का प्रयोग किया जाता है। कहा भी गया है कि गणेश जी की पूजा उपासना और साधना से समस्त सभी मनोरथ पूरे करते हैं I

हरिद्रा गणपति का महत्व:

धन, भाग्य और व्यापार की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए हरिद्रा गणेश को कैश बॉक्स, व्यापारिक लेनदेन की जगह, आलमारी, लॉकर या पूजा स्थल आदि में रखा जा सकता है।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, हरिद्रा गणेश बुध, बृहस्पति और बुधादित्य योग, नीच भंग राज योग के प्रभाव को बढ़ाता है जो एक जन्म कुंडली में बनता है।

हरिद्रा गणपति भी देशी जन्म कुंडली में पुरुषवादी या कमजोर बुध / बृहस्पति के कारण होने वाले दोषों (या नकारात्मकता) को कम करते हैं।

शत्रुओं, प्रतिद्वंद्वियों या प्रतिस्पर्धियों से सुरक्षा के लिए देवी बगलामुखी की पूजा के दौरान हरिद्रा गणेश का उपयोग किया जाता है।


मंत्र का फल

हरिद्रा गणेश मंत्र गृहस्थ जीवन सुखी बनाने के साथ पौरुष, वीरता, प्रदान करता है। यह नपुंसकता समाप्त करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।


विनियोग- अस्य हरिद्रा गणनायक मंत्रस्य मदन ऋषि: अनुष्टुपछंद: हरिद्रागणनायकोदेवता ममाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोग: ।

ध्यान-

पाशांकुशौ मोदकमेकदंतं करैर्दधानं कनकासनस्थम् ।
हारिद्रखंडप्रतिमं त्रिनेत्रं पीतांशुकं रात्रि गणेश मीडे ।।

हरिद्रा गणेश मंत्र

ऊं हुं गं ग्लौं हरिद्रा गणपतये वरवरद सर्वजन हृदयं स्तंभय स्तंभय स्वाहा ।





शत्रुओं, प्रतिद्वंद्वियों या प्रतिस्पर्धियों से सुरक्षा के लिए देवी बगलामुखी की पूजा के दौरान हरिद्रा गणेश का उपयोग किया जाता है।




Saturday, June 3, 2023

Siddh Kunjika Stotram : Benifits, How to do and more

 Namaskar🙏

Siddha Kunjika Stotram is one of the most powerful Sanskrit hymns dedicated to Kunjika Devi. The recitation of this stotra will remove the problems and obstacles in your life. Chanting this stotra in adverse places and conditions will liberate you from all your sorrow and suffering. If you are struggling with unknown enemies, reciting the Siddha Kunjika Stotram with full devotion can free you from them.

How to recite Siddha Kunjika Stotra

Chanting this in the evening or at night will be beneficial. A Deep should be lit in front of the goddess. After this sit on the red asana. If you can wear red, even better. After this, salutation to the Goddess should be taken. Then recite Kunjika Stotra. A devotee who recites the Siddha Kunjika Stotra should observe purity.

प्रस्तुत है श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र-

विनियोग : ॐ अस्य श्री कुन्जिका स्त्रोत्र मंत्रस्य सदाशिव ऋषि:॥
अनुष्टुपूछंदः
 

॥ श्रीत्रिगुणात्मिका देवता ॥ ॐ ऐं बीजं ॥ ॐ ह्रीं शक्ति: ॥ ॐ क्लीं कीलकं ॥ मम सर्वाभीष्टसिध्यर्थे जपे विनयोग: ॥










DharmDev: What is it?

 DharmDev is a website which wil help you understand spirtuality easily.


Meet you in our first blog.
Be Tuned.


दस महाविद्याओ मे एक माँ त्रिपुर भैरवी साधना विधि त्रिपुर भैरवी की उपासना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं। यह बंदीछोड़ माता है। भैरवी के नाना प्र...