साधना विधि
साधक प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर अपने घर में किसी एकान्त स्थान अथवा पूजा कक्ष में चैतन्य मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त महाकाली यंत्र एवं महाकाली चित्र स्थापित करें.
यदि वह चाहे तो अकेला या अपनी पत्नी के साथ बैठकर पूजन कार्य कर सकता है.
पूजन के लिए कोई जटिल विधि-विधान नहीं है. यंत्र व चित्र पर कुंकुंम, अक्षत, पुष्प व प्रसाद चढ़ाकर संकल्प करें, कि मैं समस्त कामनाओं की पूर्ति सिद्धि केलिए महाकाली साधना कर रहा हूँ.
सर्वप्रथम गणपति पूजन व गुरु ध्यान कर इस साधना में साधक को प्रवृत्त होना चाहिए. साधक को चाहिए कि वह नित्य लगभग पन्द्रह हजार मंत्र जप सम्पन्न करे अर्थात् 150 मालाएं यदि नित्य साधक सम्पन्न करता है, तो आठ दिन में एक लाख मंत्र जप पूर्ण कर सकता है, जिससे कि उसे सिद्धि एवं अनुकूलता प्राप्त हो जाती है.
साधना काल में ध्यान रखने योग्य तथ्य
जो साधक या गृहस्थ महाकाली साधना सम्पन्न करना चाहे, उसे निम्न तथ्यों का पालन करना चाहिए, जिससे कि वह अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त कर सके
महाकाली साधना किसी भी समय से प्रारम्भ की जा सकती है, परन्तु नवरात्रि में इस साधना का विशेष महत्व है. नवरात्रि के प्रथम दिन से ही इस साधना को प्रारम्भ करना चाहिए और अष्टमी को इसका समापन किया जाना शास्त्र सम्मत है.
इस साधना में कुल एक लाख मंत्र जप किया जाता है. यह नियम नहीं है, कि नित्य निश्चित संख्या में ही मंत्र जप हो, परन्तु यदि नित्य पन्द्रह हजार मंत्र जप होता है, तो उचित है.
यह साधना पुरुष या स्त्री कोई भी कर सकता है, परन्तु यदि स्त्री साधना काल में रजस्वला हो जाय, तो उसी समय उसे साधना बंद कर देनी चाहिए. साधना काल में स्त्री संसर्ग वर्जित है, साधक शराब आदि न पिये और न जुआ खेले.
साधना प्रात या रात्रि दोनों समय में की जा सकती है, यदि साधक चाहे तो प्रातःकाल और रात्रि दोनों ही समय का उपयोग कर सकता है. साधना काल में रुद्राक्ष की माला का प्रयोग ज्यादा उचित माना गया है.
आसन सूती या ऊनी कोई भी हो सकता है, पर वह काले रंग का हो. यदि घर में साधना करे तो साधक पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके बैठे, सामने घी का दीपक लगा ले, अगरबत्ती लगाना अनिवार्य नहीं है.
साधक के सामने पूर्ण चैतन्य महाकाली यंत्र और महाकाली चित्र फ्रेम में मढ़ा हुआ स्थापित होना चाहिए, जो कि मंत्र सिद्ध व प्राण प्रतिष्ठा युक्त हो .
प्रथम दिन महाकाली देवी का पूजन कर उसका ध्यान कर मंत्र जप प्रारम्भ कर देना चाहिए, पूजन में कोई जटिल विधि-विधान नहीं है, साधक मानसिक या पंचोपचार पूजन कर सकता है.
रात्रि में भूमि शयन करना चाहिए, खाट या पलंग का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए.
भोजन एक समय एक स्थान पर बैठ कर जितना भी चाहे किया जा सकता है, पर शराब, मांस, लहसुन, प्याज आदि का निषेध है.
महाकाली साधना प्रयोग
प्रथम दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर आसन पर पूर्व की ओर मुंह कर सामने शुद्ध घृत का दीपक लगाकर तथा महाकाली यंत्र व चित्र को स्थापित कर उसकी पूजा करें, इसके पूर्व गणपति और गुरु पूजन आवश्यक है.
इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर हिन्दी में ही संकल्प लिया जा सकता है, कि मैं अमुक तिथि तक एक लाख मंत्र जप अमुक कार्य के लिए कर रहा हूं, आप मुझे शक्ति दें, जिससे कि मैं अपनी साधना में सफलता प्राप्त कर सकूँ ऐसा कह कर हाथ में लिया हुआ जल जमीन पर छोड़ देना चाहिए. इसके बाद नित्य संकल्प करने की आवश्यकता नहीं है.
फिर निम्नलिखित महाकाली ध्यान करें
शवारूदाम्महाभीमां घोरदंष्ट्रां हसन्मुखीम् चतुर्भुजां खड्गमुण्डवराभयकरां शिवाम् ..
मुण्डमालाधरान्देवीं लोलजिह्वान्दिगम्बरां एवं संचिन्तयेत्कालीं श्मशानालयवासिनीम्
ध्यान के बाद निम्नलिखित मंत्र का जप प्रारम्भ करें, जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, इस मंत्र की रुद्राक्ष माला से नित्य एक सौ पचास मालाएं सम्पन्न होनी चाहिएl
मंत्र
॥ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं स्वाहा॥
वस्तुत यह मंत्र अपने आप में अद्वितीय महत्वपूर्ण शीघ्र सिद्धिप्रद और साधक की समस्त मनोकामना की पूर्ति में सहायक हैl
महाकाली साधना कलियुग में कल्प वृक्ष के समान शीघ्र फल देने वाली है. इसकी साधना सरल होने के साथ ही साथ प्रभाव युक्त है l
इससे भी बड़ी बात यह है कि इस प्रकार की साधना करने से साधक को किसी प्रकार की हानि नहीं होती , उसे लाभ ही होता है
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