Sunday, November 19, 2023

मां काली का कैसे हुआ जन्म, अमावस्या से जुड़ा है महत्व, आधीरात में की जाती है पूजा l DharmDev



दीपावली पर्व के दिन मां महालक्ष्मी की पूजा की जाती है. लेकिन क्या आप जानते है दीपावली की मध्य रात्रि को मां काली की पूजा का विशेष विधान है. लेकिन पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में इस अवसर पर मां काली की पूजा होती है. यह पूजा अर्धरात्रि में की जाती है. वहीं, कोरबा में भी कुछ स्थानों पर मां काली की मूर्ति स्थापित कर दिवाली की रात्रि विशेष पूजा अनुष्ठान  किया जाता है । अमावस्या की अर्धरात्रि को मां काली का पूजा इसलिए की जाती है कि इस काली रात से अब मां काली हमें उजाले की ओर ले जाएंगी और सदमार्ग दिखाएंगी ।भक्तों को मां काली के रौद्र रूप को देखकर डरना नहीं चाहिए। मां अपने बच्चों के लिए बहुत शांत है और इस दिन व्यक्ति को मां काली की पूजा कर क्षमा मांगते हुए अपने सभी दुर्गु नको त्यागना चाहिए. 

महानिशीथ काल में पूजा करने से घर-परिवार में समृद्धि का वास होता है।

दिवाली के दिन क्यों होती है मां काली की पूजा और किन बातों का रखना चाहिए खास ध्यान?
काली पूजा कार्तिक मास में खास तौर पर बंगाल, उड़ीसा एवं असम में मनाया जाता है। यह पूजा कार्तिक मास की अमावस्या जिसे दीपनिता अमावस्या भी कहते हैं उस दिन की जाती है। काली पूजा को श्यामा पूजा भी कहते हैं। बंगाली परंपरा के अनुसार दिवाली को काली पूजा भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन मां काली 64,000 योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं और रक्तबीज जैसे राक्षसों और दुष्टों का संहार किया था। ऐसा माना जाता है कि आधी रात को मां काली की विधिवत पूजा करने से मनुष्य के जीवन की सारी दुख और पीड़ाएं शांत हो जाती है। मां काली की पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।




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