Sunday, November 26, 2023

दस महाविद्याओ मे एक माँ त्रिपुर भैरवी साधना विधि

त्रिपुर भैरवी की उपासना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं। यह बंदीछोड़ माता है। भैरवी के नाना प्रकार के भेद बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुवनेश्वर भैरवी, संपदाप्रद भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कौलेश्वर भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, नित्याभैरवी, रुद्रभैरवी, भद्र भैरवी तथा षटकुटा भैरवी आदि। त्रिपुरा भैरवी ऊर्ध्वान्वय की देवता हैं।
त्रिपुर भैरवी माता के बीज मंत्रों का जप करने से एक साथ अनेक संकटों से मुक्ति मिल जाती है। इन मंत्रों का जप करने वाला मनुष्य अत्यधिक धन का स्वामी बनकर जीवन मे सौभाग्य और सुख के साथ आरोग्य का अधिकारी बन जाता है।

माता की चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। इन्हें षोडशी भी कहा जाता है। षोडशी को श्रीविद्या भी माना जाता है। यह साधक को युक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करती है। इसकी साधना से षोडश कला निपुण सन्तान की प्राप्ति होती है। जल, थल और नभ में उसका वर्चस्व कायम होता है। आजीविका और व्यापार में इतनी वृद्धि होती है कि व्यक्ति संसार भर में धन श्रेष्ठ यानि सर्वाधिक धनी बनकर सुख भोग करता है।

माता त्रिपुर भैरवी के ध्यान का उल्लेख दुर्गासप्तशती के तीसरे अध्याय में महिषासुर वध के प्रसंग में हुआ है। इनका रंग लाल है। ये लाल वस्त्र पहनती हैं, गले में मुंडमाला धारण करती हैं और शरीर पर रक्त चंदन का लेप करती हैं। ये अपने हाथों में जपमाला, पुस्तक और अभय मुद्रा धारण करती हैं। ये कमलासन पर विराजमान हैं। भगवती त्रिपुरभैरवी ने ही मधुपान करके महिषका हृदय विदीर्ण किया था। रुद्रयामल एवं भैरवी कुल सर्वस्व में इनकी उपासना करने का विधान है।

माता त्रिपुर भैरवीने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करने का दृढ़ निर्णय लिया था। सभी महान ऋषि-मुनि भी इनकी तपस्या को देखकर हैरण रह गए

माँ त्रिपुर भैरवी की पूजा में लाल रंग का उपयोग करने से माता अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाती है।
भैरवी के बीज मंत्रों का जप करने से एक साथ अनेक संकटों से मुक्ति मिल जाती है। इन मंत्रों का जप करने वाला अत्यधिक धन का स्वामी बनकर जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ आरोग्य का अधिकारी बन जाता है।

माँ त्रिपुर भैरवी साधना पूजा विधि 
महाविद्या त्रिपुरा भैरवी की साधना नवरात्रि या शुक्ल पक्ष के बुधवार या शुक्रवार के दिन से शुरू कर सकते हैं !

समय रात्रि नौ बजे के बाद कर सकते हैं । 
साधक को स्नान करके शुद्ध लाल वस्त्र धारण करके अपने घर में किसी एकान्त स्थान या पूजा कक्ष में पूर्व दिशा की तरफ़ मुख करके लाल ऊनी आसन पर बैठ जाए !

उसके बाद अपने सामने चौकी रखकर उस पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान शिव यंत्र स्थापित करें !

फिर प्लेट रखकर रोली से त्रिकोण बनाये उस त्रिकोण में पर के ऊपर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त “त्रिपुरा भैरवी यंत्र” को स्थापित करें !

उसके बाद यन्त्र के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाकर यंत्र का पूजन करें ।त्रिपुर भैरवी यंत्र पर मंत्र पढ़ते हुए कुछ लाल पुष्प विषेशकर गुलाब के फूल चढ़ाये।

विनियोग पढ़े : 

ॐ अस्य श्री त्रिपुर भैरवी मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषि: पंक्तिश्छ्न्द: त्रिपुर भैरवी देवता वाग्भवो बीजं शक्ति बीजं शक्ति: कामराज कीलकं श्रीत्रिपुरभैरवी प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:

ऋष्यादि न्यास : 

बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से नीचे दिए गये निम्न मंत्रो का उच्चारण करते हुए अपने भिन्न भिन्न अंगों को स्पर्श करें.

मंत्र :

दक्षिणामूर्तये ऋषये नम: शिरसि ( सर को स्पर्श करें )

पंक्तिच्छ्न्दे नम: मुखे ( मुख को स्पर्श करें )

श्रीत्रिपुरभैरवीदेवतायै नम: ह्रदये ( ह्रदय को स्पर्श करें )

वाग्भवबीजाय नम: गुहे ( गुप्तांग को स्पर्श करें )

शक्तिबीजशक्तये नम: पादयो: ( दोनों पैरों को स्पर्श करें )

कामराजकीलकाय नम: नाभौ ( नाभि को स्पर्श करें )

विनियोगाय नम: सर्वांगे ( पूरे शरीर को स्पर्श करें )

कर न्यास : 

अपने दोनों हाथों के अंगूठे से अपने हाथ की विभिन्न उंगलियों को स्पर्श करें, ऐसा करने से उंगलियों में चेतना प्राप्त होती है।

हस्त्रां अंगुष्ठाभ्यां नम: । ह्स्त्रीं तर्जनीभ्यां नम: । ह्स्त्रूं मध्यमाभ्यां नम: । हस्त्रैं अनामिकाभ्यां नम: । ह्स्त्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नम: । हस्त्र: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: ।

ह्र्दयादि न्यास : 

पुन: बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से नीचे दिए गये निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करते हुए ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र होते जा रहे हैं ! ऐसा करने से आपके अंग शक्तिशाली बनेंगे और आपमें चेतना प्राप्त होती है

न्यास करें : 

हस्त्रां ह्रदयाय नम: । हस्त्रां शिरसे स्वाहा । ह्स्त्रूं शिखायै वषट् । हस्त्रां कवचाय हुम् । ह्स्त्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् । हस्त्र: अस्त्राय फट् ।

त्रिपुर भैरवी ध्यान 

इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती त्रिपुर भैरवी का ध्यान करके पूजन करें। धुप, दीप, चावल, पुष्प से ।

इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती त्रिपुर भैरवी का ध्यान करके, त्रिपुर भैरवी माँ का पूजन करे धुप, दीप, चावल, पुष्प से तदनन्तर त्रिपुर भैरवी महाविद्या का पूजा करें

ध्यान

उधदभानुसहस्त्रकान्तिमरूणक्षौमां शिरोमालिकां,

रक्तालिप्रपयोधरां जपवटी विद्यामभीतिं परम् ।

हस्ताब्जैर्दधतीं भिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं,

देवी बद्धहिमांशुरत्नस्त्रकुटां वन्दे समन्दस्मिताम् ।।
अर्थ:
1: (मैं देवी त्रिपुरभैरवी का ध्यान करता हूं) जिनमें हजारों उगते सूर्यों का तेज है , जो लाल वस्त्र और खोपड़ी की माला पहने हुए हैं , 2: जिनके स्तन रक्त से सने हुए हैं; जिसके पास मालाऔर पुस्तक है ; और अभिति (निर्भयता) और वर (वरदान देने वाली) मुद्राएं (इशारे) प्रदर्शित कर रही हैं ... 3: ... अपने कमल हाथों से ; जिनकी तीन आंखें लाल कमल की सुंदरता से चमक रही हैं, 4: देवी ने अपने सिर पर एक लाल मुकुट पहना हुआ है , जिस परशीतल किरणों वाला चंद्रमा बंधा हुआ है ; मैं उस देवी की पूजा करता हूं जो सौम्य मुस्कान बिखेर रही हैं ।

त्रिपुर भैरवी साधना सिद्धि मन्त्र 

॥ ह सें ह स क रीं ह सें ॥

या

॥ ॐ हसरीं त्रिपुर भैरव्यै नम: ॥

त्रिपुर भैरवी बीज मंत्र 

माँ त्रिपुर भैरवी के बीज मंत्रों का जप करने से एक साथ अनेक संकटों से मुक्ति मिल जाती है। इन मंत्रों का जप करने वाला अत्यधिक धन का स्वामी बनकर जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ आरोग्य का अधिकारी बन जाता है। साथ ही मनोवांछित वर या कन्या को जीवनसाथी के रूप में प्राप्त करता है।

1- ।। ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:।।

2- ।। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः।।

3- ।। ॐ ह्रीं सर्वैश्वर्याकारिणी देव्यै नमो नम:।।







Sunday, November 19, 2023

मां काली का कैसे हुआ जन्म, अमावस्या से जुड़ा है महत्व, आधीरात में की जाती है पूजा l DharmDev



दीपावली पर्व के दिन मां महालक्ष्मी की पूजा की जाती है. लेकिन क्या आप जानते है दीपावली की मध्य रात्रि को मां काली की पूजा का विशेष विधान है. लेकिन पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में इस अवसर पर मां काली की पूजा होती है. यह पूजा अर्धरात्रि में की जाती है. वहीं, कोरबा में भी कुछ स्थानों पर मां काली की मूर्ति स्थापित कर दिवाली की रात्रि विशेष पूजा अनुष्ठान  किया जाता है । अमावस्या की अर्धरात्रि को मां काली का पूजा इसलिए की जाती है कि इस काली रात से अब मां काली हमें उजाले की ओर ले जाएंगी और सदमार्ग दिखाएंगी ।भक्तों को मां काली के रौद्र रूप को देखकर डरना नहीं चाहिए। मां अपने बच्चों के लिए बहुत शांत है और इस दिन व्यक्ति को मां काली की पूजा कर क्षमा मांगते हुए अपने सभी दुर्गु नको त्यागना चाहिए. 

महानिशीथ काल में पूजा करने से घर-परिवार में समृद्धि का वास होता है।

दिवाली के दिन क्यों होती है मां काली की पूजा और किन बातों का रखना चाहिए खास ध्यान?
काली पूजा कार्तिक मास में खास तौर पर बंगाल, उड़ीसा एवं असम में मनाया जाता है। यह पूजा कार्तिक मास की अमावस्या जिसे दीपनिता अमावस्या भी कहते हैं उस दिन की जाती है। काली पूजा को श्यामा पूजा भी कहते हैं। बंगाली परंपरा के अनुसार दिवाली को काली पूजा भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन मां काली 64,000 योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं और रक्तबीज जैसे राक्षसों और दुष्टों का संहार किया था। ऐसा माना जाता है कि आधी रात को मां काली की विधिवत पूजा करने से मनुष्य के जीवन की सारी दुख और पीड़ाएं शांत हो जाती है। मां काली की पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।




Tuesday, November 7, 2023

Dakshinakali is the most popular form of Kali in Bengal. She is the benevolent mother, who protects her devotees and children from mishaps and misfortunes. There are various versions for the origin of the name Dakshinakali. Dakshina refers to the gift given to a priest before performing a ritual or to one's guru.

साधना विधि
साधक प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर अपने घर में किसी एकान्त स्थान अथवा पूजा कक्ष में चैतन्य मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त महाकाली यंत्र एवं महाकाली चित्र स्थापित करें.

यदि वह चाहे तो अकेला या अपनी पत्नी के साथ बैठकर पूजन कार्य कर सकता है.

पूजन के लिए कोई जटिल विधि-विधान नहीं है. यंत्र व चित्र पर कुंकुंम, अक्षत, पुष्प व प्रसाद चढ़ाकर संकल्प करें, कि मैं समस्त कामनाओं की पूर्ति सिद्धि केलिए महाकाली साधना कर रहा हूँ.

सर्वप्रथम गणपति पूजन व गुरु ध्यान कर इस साधना में साधक को प्रवृत्त होना चाहिए. साधक को चाहिए कि वह नित्य लगभग पन्द्रह हजार मंत्र जप सम्पन्न करे अर्थात् 150 मालाएं यदि नित्य साधक सम्पन्न करता है, तो आठ दिन में एक लाख मंत्र जप पूर्ण कर सकता है, जिससे कि उसे सिद्धि एवं अनुकूलता प्राप्त हो जाती है.

साधना काल में ध्यान रखने योग्य तथ्य
जो साधक या गृहस्थ महाकाली साधना सम्पन्न करना चाहे, उसे निम्न तथ्यों का पालन करना चाहिए, जिससे कि वह अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त कर सके
महाकाली साधना किसी भी समय से प्रारम्भ की जा सकती है, परन्तु नवरात्रि में इस साधना का विशेष महत्व है. नवरात्रि के प्रथम दिन से ही इस साधना को प्रारम्भ करना चाहिए और अष्टमी को इसका समापन किया जाना शास्त्र सम्मत है.
इस साधना में कुल एक लाख मंत्र जप किया जाता है. यह नियम नहीं है, कि नित्य निश्चित संख्या में ही मंत्र जप हो, परन्तु यदि नित्य पन्द्रह हजार मंत्र जप होता है, तो उचित है.
यह साधना पुरुष या स्त्री कोई भी कर सकता है, परन्तु यदि स्त्री साधना काल में रजस्वला हो जाय, तो उसी समय उसे साधना बंद कर देनी चाहिए. साधना काल में स्त्री संसर्ग वर्जित है, साधक शराब आदि न पिये और न जुआ खेले.
साधना प्रात या रात्रि दोनों समय में की जा सकती है, यदि साधक चाहे तो प्रातःकाल और रात्रि दोनों ही समय का उपयोग कर सकता है. साधना काल में रुद्राक्ष की माला का प्रयोग ज्यादा उचित माना गया है.
आसन सूती या ऊनी कोई भी हो सकता है, पर वह काले रंग का हो. यदि घर में साधना करे तो साधक पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके बैठे, सामने घी का दीपक लगा ले, अगरबत्ती लगाना अनिवार्य नहीं है.
साधक के सामने पूर्ण चैतन्य महाकाली यंत्र और महाकाली चित्र फ्रेम में मढ़ा हुआ स्थापित होना चाहिए, जो कि मंत्र सिद्ध व प्राण प्रतिष्ठा युक्त हो .
प्रथम दिन महाकाली देवी का पूजन कर उसका ध्यान कर मंत्र जप प्रारम्भ कर देना चाहिए, पूजन में कोई जटिल विधि-विधान नहीं है, साधक मानसिक या पंचोपचार पूजन कर सकता है.
रात्रि में भूमि शयन करना चाहिए, खाट या पलंग का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए.
भोजन एक समय एक स्थान पर बैठ कर जितना भी चाहे किया जा सकता है, पर शराब, मांस, लहसुन, प्याज आदि का निषेध है.
महाकाली साधना प्रयोग
प्रथम दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर आसन पर पूर्व की ओर मुंह कर सामने शुद्ध घृत का दीपक लगाकर तथा महाकाली यंत्र व चित्र को स्थापित कर उसकी पूजा करें, इसके पूर्व गणपति और गुरु पूजन आवश्यक है.

इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर हिन्दी में ही संकल्प लिया जा सकता है, कि मैं अमुक तिथि तक एक लाख मंत्र जप अमुक कार्य के लिए कर रहा हूं, आप मुझे शक्ति दें, जिससे कि मैं अपनी साधना में सफलता प्राप्त कर सकूँ ऐसा कह कर हाथ में लिया हुआ जल जमीन पर छोड़ देना चाहिए. इसके बाद नित्य संकल्प करने की आवश्यकता नहीं है.

फिर निम्नलिखित महाकाली ध्यान करें

शवारूदाम्महाभीमां घोरदंष्ट्रां हसन्मुखीम् चतुर्भुजां खड्गमुण्डवराभयकरां शिवाम् ..

मुण्डमालाधरान्देवीं लोलजिह्वान्दिगम्बरां एवं संचिन्तयेत्कालीं श्मशानालयवासिनीम् 

ध्यान के बाद निम्नलिखित मंत्र का जप प्रारम्भ करें, जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, इस मंत्र की रुद्राक्ष माला से नित्य एक सौ पचास मालाएं सम्पन्न होनी चाहिएl

मंत्र

॥ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं स्वाहा॥

वस्तुत यह मंत्र अपने आप में अद्वितीय महत्वपूर्ण शीघ्र सिद्धिप्रद और साधक की समस्त मनोकामना की पूर्ति में सहायक हैl

महाकाली साधना कलियुग में कल्प वृक्ष के समान शीघ्र फल देने वाली है. इसकी साधना सरल होने के साथ ही साथ प्रभाव युक्त है l

इससे भी बड़ी बात यह है कि इस प्रकार की साधना करने से साधक को किसी प्रकार की हानि नहीं होती , उसे लाभ ही होता है

Sunday, November 5, 2023

Krishna Paksha Ashtami and Kaal Bhairav Stotra | कृष्ण पक्ष अष्टमी और कालभैरव स्तोत्र | DharmDev

Hi friends!
नमस्ते दोस्तो! 
Significance of Krishna Paksha Ashtami
Appeasing the God shall also ensure confidence and determination in mind. Generally, the day is not considered auspicious to start any new venture, education, marriage, construction or travel.


Rituals of Krishna Paksha Ashtami
Devotees of Bhairava begin the day with an early bath and perform special Pooja for Kala Bhairava to gain his blessings. People also observe strict Vrat (fasting) for the whole day to receive happiness, peace and prosperity blessings. Visiting Kala Bhairava temples and chanting mantras in praise of him can appease the lord. Feeding stray dogs is considered beneficial, as dog is regarded as the vehicle of Kala Bhairava. The day is also ideal for performing Tarpanam for ancestral and offering food to pious Brahmins.

काल भैरव अष्टक के लाभ
•काल भैरव अष्टक लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने का निर्देश देता है।
•यह साधक को पापों और बुरे कर्मों के परिणामों से मुक्त करता है।
•काल भैरव अष्टक राहु, केतु और शनि दोषों के नकारात्मक प्रभावों को कम करता है।
•काल भैरव अष्टक के पाठ से जीवन की सभी समस्याओं का अंत होता है।

मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा-अर्चना करने से भगवान शिव जल्द प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करते हैं। साथ ही काल भैरव की पूजा से अमोघ फल की प्राप्ति होती है और नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं। काल भैरव भगवान शिव का रूद्र रूप है, इनको तंत्र-मंत्र का देवता भी माना गया है।

श्री काल भैरव अष्टकम हिंदी अर्थ सहित ।।

ॐ देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥ १॥

जिनके पवित्र चरर्णों की सेवा देवराज इंद्र भगवान सदा करते हैं, जिन्होंने शिरोभूषण के रुप में चंद्र और सांप (सर्प) को धारण किया है, जो दिगंबर जी के वेश में हैं और नारद भगवान आदि योगिगों का समूह जिनकी पूजा, वंदना करते हैं, उन काशी के नाथ कालभैरव जी को मैं भजता हूं।

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥२॥

जो सूर्य के समान प्रकाश देने वाले हैं, परमेश्वर भवसागर से जो तारने वाले हैं, जिनका कंठ नीला है और सांसारिक समृद्धियां प्रदान करते हैं और जिनके नेत्र तीन हैं। जो काल के भी काल हैं और जिनका त्रिशूल तीन लोकों को धारण करता है और जो अविनाशी हैं उस काशी के स्वामी कालभैरव को मैं भजता हूं।

शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥३॥

जो अपने दोनों हाथों में त्रिशूल, फन्दा, कुल्हाड़ी और दंड लिया करते हैं, जो सृष्टि के सृजन के कारण हैं और सांवले रंग के हैं और आदिदेव सांसारिक रोगों से परे हैं, जिन्हें विचित्र तांडव पसंद है उस काशी के नाथ कालभैरव को मैं भजता हूं

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥४॥

जो मुक्ति प्रदान करते हैं, शुभ, आनंद दायक रुप धारण करते हैं, जो भक्तों से सदा प्रेम करते हैं और तीने लोकों में स्थित हैं। जो अपनी कमर पर घंटियां धारण करते हैं उन काशी के भगवान कालभैरव को मैं भजता हूं।

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५॥

जो धर्म की रक्षा करते हैं और अधर्म के मार्गों का नाश करते हैं, कर्मों के जाल से मुक्त करते हैं। जो स्वर्ण रंग के सांप से सुशोभित हैं उस काशी के नाथ कालभैरव को मैं भजता हूं।

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम ।
मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥६॥

जिनके दोनों पैर रत्न जड़ित हैं, जो इष्ट देवता और परम पवित्र हैं। जो अपने दांतों से मौत का भय दूर करते हैं उन काशी के नाथ कालभैरव को मैं भजता हूं।

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥७॥

जिनकी हंसी की ध्वनि से कमल से उत्पन्न ब्रह्मा की सभी कृतियों की गति रुक जाती है, जिसकी दृष्टि पड़ने से पापों का नाश हो जाता है, जो अष्ट सिद्धियां प्रदान करते हैं और मुंड़ों की माला धारण करते हैं उस काशी के नाथ कालभैरव को मैं भजता हूं।

भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥८॥

जो भूत, प्रेतों के स्वामी हैं और विशाल कीर्ति प्रदान करने वाले हैं, जो सत्य और नीति का रास्ता दिखाते हैं, जो जगतपति हैं उस काशी के नाथ कालभैरव को मैं भजता हूं।

कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम ॥९॥

जो काल भैरव अष्टकम का पाठ करते हैं, वो ज्ञान और मुक्ति को प्राप्त करते हैं। पुण्य पाते हैं और मृत्यु के पश्चात शोक, मोह, लोभ, ताप, क्रोध आदि का नाश करने वाले भागवान काल भैरव के चरणों को प्राप्त करते हैं।

||Thank you||
||आपका धन्यवाद ||
© DharmDev

Tuesday, September 5, 2023

दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र

 दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र के लाभ को शीघ्र-अतिशीघ्र पाने के लिए प्रत्येक शुक्ल और कृष्ण पक्ष के प्रदोष को व्रत धारण करें।
सुबह प्रातः काल शिवजी की पूजा अर्चना तथा शिवलिंग का जलाभिषेक करें।
शाम  में किसी शिव मंदिर में जाएँ और सर्वप्रथम शिवजी का ध्यान और संकल्प करें।
तत्पश्चात शिवलिंग का जलाभिषेक करें।
भगवान शिव के सामने दो बाती के दीपक को जलाएं, अर्थात एक हीं दीपक में दो अलग अलग बाती लगी हो।
ध्यान रखें की दिए में लम्बी वाली बाती होनी चाहिए। गाय के घी का दीया सर्वोत्तम माना गया है।
दारिद्र्यदहनशिवस्तोत्रम् 
विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय । कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ १॥ गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय । गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ २॥ भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय । ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ३॥ चर्मम्बराय शवभस्मविलेपनाय भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय । मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ४॥ पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय । आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ५॥ भानुप्रियाय भवसागरतारणाय कालान्तकाय कमलासनपूजिताय । नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ६॥ रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय । पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ७॥ मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय । मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ८॥ वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम् । सर्वसम्पत्करं शीघ्रं 

Friday, June 23, 2023

महादेव अपनी गरदन में सांप क्यों लपेटे रहते हैं?

 

देवों के देव महादेव सभी देवताओं से निराले हैं। इनके अस्त्र शस्त्र से लेकर इनके वस्त्र और आभुषण भी सभी देवी-देवताओं से अलग है। शरीर पर बाघ की खाल धारण किए हुए महादेव गले में नाग का श्रृगांर करते हैं। तो क्या कभी किसी ने सोचा है इनके गले में नाग क्यों हैं। +वो नाग कौन हैं? और शंकर जी के गले में क्यों रहता है? दोस्तों आज हम आपको इस वीडियों में बताने जा रहें हैं कि भगवान शिव में  bके गले में हर समय नाग क्यों लिपटा रहता है। और वो उनके गले में कैसे आए।


एक कथा के अनुसार वासुकि भगवान शिव के परम भक्त थे। माना जाता है कि नाग जाति के लोगों ने ही सबसे पहले शिवलिंग की पूजा का प्रचलन शुरू किया था। वासुकि की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे वरदान मांगने के लिए कहा। तब नागराज ने उनके बाकि गणों की तरह ही उन्हें भी अपने गणों में शामिल करके उनकी सेवा करने का वरदान मांगा। तब से भगवान शंकर ने उन्हें अपने गले में धारण कर लिया।

.भगवान शंकर अपने सवारी नंदी की तरह की प्रेम करते हैं। और यही वजह है शिव और शिवलिंग को नाग के बिना अधूरा माना जाता है।

दस महाविद्याओ मे एक माँ त्रिपुर भैरवी साधना विधि त्रिपुर भैरवी की उपासना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं। यह बंदीछोड़ माता है। भैरवी के नाना प्र...